अभी तक मेवों को दीन के बारे में इतनी सी बात भी समझ नहीं आई कि जो बात कुरआन व हदीस से साबित है या कुरआनी उसूलों पर खरी उतरती हो वो बात काबिल-ए-कुबूल है और जो इनके खिलाफ है वो काबिल-ए-रद्द है चाहे कहने वाला अमीरुल मुअमिनीन ही क्यों न हो, हज़रत उमर रजि० मेहर फिक्स करने चले तो एक कुरैशी औरत ने फौरन टोक दिया कि तुम कौन होते हो मेहर को फिक्स करने वाले जब अल्लाह और उसके रसूल ने नहीं किया? यही ईमान है, यही असलाफ का रवैया रहा है!
और आज हमारा हाल ये है के हम से किसी मौलाना या किसी हजरजी ने कुच्छ कह दिया तो उस बात के सामने क़ुरान और हदीस को भी भूल जाते है. जो बहुत ही ज़यादा गलत बात है.!
उलमा की गलत बात को भी सही मानना ये बनी इसराईल का रवैया रहा है, ज़रा होश में आइए! कुरआन पढ़कर तो देखिए कभी, इस्लाम का खुद अध्ययन तो कीजिए! ईमान के उस वास्तविक अर्थ को समझिए जिसे अभी तक समझने से कासिर हो!