3 yrs ·Translate

मेरे रब की मुझ पर इनायत हुई
कहूँ भी तो कैसे इबादत हुई
हक़ीक़त हुई जैसे मुझ पर अयाँ
कलम से बन गया है ख़ुदा की जुबां

मुख़ातिब है बंदे से परवरदिगार
तू हुस्न-ए-चमन तू ही रंग-ए-बहार
तू मेराज-ए-फ़न तू ही फ़न का सिंगार
मुसव्विर हूँ मैं तू मेरा शाहकार
ये सुबहें ये शामें ये दिन और रात
ये रंगीन दिलकश हसीं कायनात
कि हूर-ओ-मलायक जिन्नात में
किया है तुझे अशरफुल मख़लूक़ात

मेरी अज़मतों का हवाला है तू
तू ही रोशनी है उजाला है तू
फ़रिश्तों से सजदा भी करवा दिया
कि तेरे लिए मैंने क्या न किया
ये दुनिया जहाँ बज़्म आराइयाँ
ये महफ़िल ये मेले ये तन्हाईयाँ
फ़लक का तुझे शामियाना दिया
ज़मीन पर तुझे आब-ओ-दाना दिया
मिले आबशारों से भी तुझे हौसले
पहाड़ो में भी तुझको दिए रास्ते
ये पानी हवा और ये शम्स-ओ-क़मर
ये मौजें रवां ये किनारा भंवर
ये शाखों पे गुलचे चटकते हुए
ये फलक पे सितारे चमकते हुए
ये सब्ज़े ये फूलों भरी क्यारियाँ
ये पंछी ये उड़ती हुई तितलियाँ
ये शोला ये शबनम ये मिट्टी ये संग
ये झरनों के बजते हुए जल तरंग
ये झीलों में हँसते हुए से कंवल
ये धरती पे मौसम की लिक्खी ग़ज़ल