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पोस्ट-1
ग़ज़ल
खुशी को बीच में सबके लुटा कर देख लेता हूँ।
जो हैं दुख पास में उनको छिपा कर देख लेता हूँ।

तुम्हारे प्यार के इज़हार से जो खुश हुआ है दिल।
उसे मैं फूल के जैसा खिला कर देख लेता हूँ।

दुखो को दूर कर के दिन कभी तो आएँगे बेहतर।
मैं सपने सोच ये अच्छे सजा कर देख लेता हूँ।

समझ कर के मुझे दुश्मन लड़ाई चाहता है जो।
उसी को दोस्त मैं अपना बना कर देख लेता हूँ।

मुसीबत में पराये हो गए हैं लोग सब अपने।
पुराने दोस्तों को आजमा कर देख लेता हूँ।

बुराई को जहाँ पर पाल कर के लोग बैठे हैं।
वहाँ भी नेकियाँ थोड़ी कमा कर देख लेता हूँ।

जमाने ने जिसे हमेशा दुख हों पहुँचाए।
जरा से सुख उसे भी तो दिला कर देख लेता हूँ।