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शहर फतह करने के बाद सुल्तान ने अपनी दारुलहकूमत एड्रिन से कस्तुनतुनिया शिफ्ट कर ली और खुद को कैसर-ए-रोम का लक़ब दिया। आने वाले दशकों में उस शहर ने वो उरूज देखा जिसने एक बार फिर कदीम ज़माने की यादें ताजा करा दीं।
इसके अलावा, उन्होंने शहर के तबाह हो चुके बुनियादी ढांचे को दोबारा तामीर करवाया, पुरानी नहरों की मरम्मत की और पानी के निकासी के इंतजाम को बेहतर बनाया। उन्होंने बड़े पैमाने पर नयी तामीरात का सिलसिला शुरू किया जिसकी सबसे बड़ी मिसाल तोपकापी महल (Topkapi Palace) और ग्रैंड बाजार है।
कस्तुनतुनिया के जवाल का यूरोप पर गहरा असर पड़ा था। वहां इस सिलसिले में कई किताबें और नजमें लिखी गई थीं और कई पेटिंग्स बनाई गईं जो लोगों की इज्तेमाई शऊर का हिस्सा बन गईं। यही कारण है कि यूरोप इसे कभी नहीं भूल सका। नाटो का अहम हिस्सा होने के बावजूद, सदियों पुराने ज़ख्मों की वजह से यूरोपीय यूनियन तुर्की को अपनाने से आनाकानी से काम लेता है। यूनान में आज भी जुमेरात को मनहूस दिन माना जाता है। क्यूंकि वो तारीख 29 मई 1453 को जुमेरात का ही दिन था।
