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मुराद II के दौर-ए-हुकूमत में सल्तनत-ए-उस्मानिया में काफी डेवलेपमेंट हुए। तिजारत में इजाफा हुआ और शहरों की खूब तरक्की हुयी। “1432 में एक यूरोपी इतिहासकार बर्ट्रेंडन डी ला ब्रोक्विएर ने लिखा था की उस्मानिया सल्तनत की आमदनी 2,500,000 ducats तक पहुंच गयी है। ये समय ऐसा है की अगर सुल्तान मुराद तमाम दस्तयाब वसायल इस्तेमाल करे तो यूरोप पर बाआसानी हमला कर सकता है।”

सुल्तान ने अपने दौर-ए-हुकूमत के इब्तेदाई दौर में ही कुस्तुन्तुनिया शहर का मुहासरा कर लिया था। उस वक्त उनके पास कुस्तुन्तुनिया की कदीमी दीवार को तोड़ने के लिए जदीद तोपें मौजूद थीं। लेकिन फिर भी वो तोपें उनके काम न सकी थीं। रूमी शहंशाह ने सुल्तान के भाई को अपने साथ मिला कर सल्तनत में बगावत करवा दी। जिससे सुल्तान को मुहासरा छोड़ कर तख़्त की हिफाजत करनी पड़ी। उसके बाद सुल्तान मरते दम तक ये शहर फतह न कर सके। लेकिन उनकी मौत के महज 2 सालों बाद ही सुल्तान के बेटे सुल्तान मुहम्मद फतेह ने उनकी ख्वाहिश पूरी की