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हरी पर्वत किला जिसे कोह-ए-मारान भी कहा जाता है जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर की हसीन वादियों के बीच डल झील के पश्चिम में स्थित एक ऊँची पहाड़ी पर मौजूद है।

इस जगह पर पहली किलाबंदी मुग़ल शहंशाह अकबर ने 1590 ई. में करवाई थी। जिन्होंने नागर नगर नामी एक नई दारुलहकूमत के लिए अपनी योजना के तहत किले के लिए एक बाहरी दीवार की तामीर करवाई थी। हालाँकि उनका ये ख्वाब पूरा नहीं हो सका। मौजूदा किला 1808 में अफगान गवर्नर अत्ता मोहम्मद खान की हुकूमत के दौरान बनाया गया था।

हरि पर्वत को कश्मीरी पंडितों द्वारा पवित्र माना जाता है। पहाड़ी में शक्ति का एक मंदिर है, जिसकी जगदंबा शारिका भगवती के नाम से पूजा की जाती है। उन्हें 18 भुजाओं वाली और श्री चक्र में बैठे हुए दिखाया गया है।

इसके आलावा हरि पर्वत के दक्षिणी हिस्से में हमजा मखदूम साहिब की दरगाह है, जो 16वीं सदी के कश्मीरी सूफी संत थे जिन्हें हजरत सुल्तान और सुल्तान-उल-अरिफीन के नाम से जाना जाता है। और किले के नीचे एक मस्जिद है जो 17वीं सदी के कादिरी सूफी संत शाह बदख्शी को समर्पित है। मस्जिद की तामीर मुग़ल शहज़ादी जहांआरा बेगम ने करवाई था।

इसके अलावा यहां एक गुरुद्वारा भी मौजूद है ऐसा माना जाता है कि काठी दरवाजा, रैनवाड़ी में गुरुद्वारा छत्ती पटशाही, वह स्थान है जहां छठे सिख गुरु, गुरु हर गोबिंद कश्मीर की यात्रा के दौरान कुछ दिनों के लिए यंहा रुके थे।

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